दोस्तों,पुरानी फ़िल्मी पत्रिकाओं से लिए गए महत्वपूर्ण लेखों/तस्वीरों/साक्षात्कारों की श्रुंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है अक्टूबर 1964 के 'फिल्मफेयर' अंक से लिए गए एक लेख के मुख्य अंश जो मशहूर फ़िल्मकार 'गुरुदत्त' के आकस्मिक निधन पर आँखों देखी रिपोर्ट स्वरुप छपा था ।
हालाँकि मूल लेख अंग्रेज़ी भाषा में है लेकिन चूँकि यह अंक अन्य अंकों के साथ बाईंडिंग में है जिसकी वजह से इसे ठीक से स्कैन नहीं किया जा सकता इसलिए मैं इस लेख के मुख्य अंशों का हिंदी में अनुवाद कर आप लोगों के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ । इस लेख का शीर्षक है
"खुदा,मौत और ग़ुलाम"
पेडर रोड पर आर्क रॉयल फ्लैट का बड़ा हाल जो अमूमन रहने के कमरे के तौर पर इस्तेमाल होता था और कभी-कभी बावक़्ते-ज़रूरत खाने के कमरे के तौर पर भी इस्तेमाल कर लिया जाता था । लेकिन आज इस कमरे का सारा फर्नीचर हटा दिया गया था और यह लोगों से खचाखच भरा था । बहुत नफ़ीस तरीके से पहने हुए स्टील-ब्लू सूट,नीली टाई और नीले मोज़ों में वह फ़र्श पर लेटा था जैसे सोया हुआ हो । ऐसा लगता था कि जैसे किसी लम्बे थका देने वाले सफ़र से वापस लौटकर उसमे बैडरूम तक जाने तक की भी ताक़त न बची हो और वह यही हाल में जहाँ जगह मिली वही एक मीठी और गहरी नींद में सो गया हो । इतनी गहरी और मीठी नींद जिसमे हाल में मौजूद तमाम की मौजूदगी भी उसे उठा नहीं पा रही हों ।
अगरबत्ती का खुशबूदार धुंआ हवा में फैला था और दीवार पर लगे शीशे में सब कुछ धुंधला सा रहा था जिससे चलते-फिरते लोग की आकृतियाँ भूतों सरीखी लग रही थीं । तभी आँसुओं से भीगा चेहरा लिए राजकपूर ने आखिरी फूलों की माला मृत देह पर रखी । अर्थी तैयार थी । कमरे में रूदन-क्रंदन की आवाज़ें तेज़ होने लगी । तभी किसी ने कहा कि अर्थी ले जाने का समय हो गया है । अर्थी उठाने के लिए कई हाथ बढ़े लेकिन राजकपूर ने हाथ से रुकने का इशारा किया और हाथ जोड़ कर रोने वाली औरतें-जिनमे गुरुदत्त की पत्नी और माता भी थी-की तरफ़ मुड कर पुछा,"क्या आपकी आज्ञा है?" लेकिन जवाब में सिर्फ़ कुछ सिसकियाँ ही उभरी ।
शाहिद लतीफ़,जॉनी वॉकर के भाई और दो लोगों ने अर्थी उठा ली । वातावरण में 'राम-नाम सत्य है,गोपाल नाम सत्य है' जैसे उच्चारण गूंजने लगे और शनिवार,10 अक्टूबर 1964 के दिन गुरुदत्त अपनी अंतिम यात्रा पर चल दिए ।
आखिरी दफ़ा गुरुदत्त को मृत्यु से दो दिन पहले फ़िल्म 'बहारें फिर भी आयेंगी' के सेट पर देखा गया था जिसमे वह एक रिपोर्टर की भूमिका कर रहे थे । जो दृश्य हमने देखा उसमे वह अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा दे देतें हैं और इस्तीफ़ा मेज़ पर फेंकते हुए माला सिन्हा से कहते हैं,"चाहे तुम इसे मंज़ूर करो या न करो लेकिन यह मेरा इस्तीफ़ा है । मैं जा रहा हूँ ...." । माला उन्हें वापस लौटने के लिए पुकारती है लेकिन वो लौटते नहीं । अब वह वापस नहीं आयेंगे,कभी नहीं !
हम उनके ऊपर के कमरे के ऑफिस में भी गए । उन्होंने बताया कि वे हमारे संपादकीय दफ़्तर को देखना चाहते हैं । वे वहां कुछ दृश्य फ़िल्माना चाहते थे । हमने कहा कि वे कभी भी आ सकते हैं । उन्होंने कहा कि शायद अगले हफ़्ते । लेकिन उन्होंने अपना वादा नहीं निभाया और यह एकलौता वादा नहीं था जो उन्होंने नहीं निभाया । जुम्मे की रात को 12:30 बजे उन्होंने अपने पड़ोसी के फ़ोन से राजकपूर को फ़ोन किया था जिसमे उन्होंने नव-निर्मित एक्टर्स गिल्ड पर अपने तबादला-ए-ख्याल किये थे जिसके गुरुदत्त एक मुख्य सदस्य थे । उन्होंने राजकपूर को शनिवार की शाम को आने के लिए आमंत्रित भी किया था और उन्हें 'कागज़ के फूल' दिखाने की व्यवस्था भी की थी ।
राजकपूर से बात होने के बाद वे ड्राइंग-रूम में गए जहाँ अबरार अल्वी 'बहारें फिर भी आएँगी' का क्लाइमेक्स दृश्य लिख रहे थे । विडंबना देखिये,यह माला सिन्हा द्वारा अभिनीत उस चरित्र का मृत्यु दृश्य था जो अकेलेपन,मानसिक तनाव एवं हृदयघात का शिकार होता है । दृश्य के बारे में उनकी प्रतिक्रिया सामान्य रूप से थी । दृश्य के बारे में चर्चा करते समय गुरुदत्त अबरार अल्वी को किसी ख़त के बारे में बताते हैं जो उन्हें पूना के उनके किसी पुराने परिचित ने आर्थिक सहायता मांगने के उद्देश्य से भेजा था । साथ ही साथ दृश्य में वर्णित 'अकेलेपन' पर भी कुछ चर्चा हुई जो अबरार लिख रहे थे ।
"मैं अब आराम करना चाहूँगा", गुरुदत्त को अबरार को कहे गए यह अंतिम शब्द थे जिसके बाद अपने पीछे दृश्य लिखते अबरार को छोड़कर सोने के कमरे में वह एक ऐसी नींद में सोने चले गए जिससे कि वह कभी भी जागने वाले नहीं थे । कहा जाता है कि उनका अंत सुबह के किसी वक़्त आया था ।
गुरुदत्त के निजी चिकित्सक हस्बे-मामूल सुबह के समय आये और उन्हें जागा न पाकर लौट गए । वे दोबारा 11 बजे फिर लौटकर आये लेकिन सिर्फ़ उन्हें मृत पाने के लिए । बैडरूम का मुख्य दरवाज़ा बंद था जिसे गीता दत्त के कहने पर तोड़कर घर के नौकरों द्वारा अन्दर जाया गया । डॉक्टर्स द्वारा मृत्यु का सर्टिफिकेट न देने पर पुलिस को सूचित किया गया ।
सबसे पहले आने वालों में से थे राजकपूर और देव आनंद जिन्हें फ़ोन पर गुरुदत्त की मौत की खबर दी गयी । देव ने अपनी शूटिंग कैंसिल कर दी और भागे-भागे पेडर रोड आये । राजकपूर भी आये और मृत देह के साथ पोस्टमॉर्टेम हाउस गए जहाँ से औपचारिकतायें पूरी होने के बाद मृत देह को वापस पेडर रोड ले जाया गया ।
सुनील दत्त और नर्गिस भी अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में से थे । मृत्यु के दो दिन बाद नर्गिस ने बताया कि,"गीता दत्त ने मुझे बताया था कि फ्राइडे की रात उसे एक अजीब सी बेचैनी ने घेर रखा था "। नर्गिस के अनुसार गीता दत्त,जो अपनी माँ के घर पर थी,को एक अजीब सा पूर्वाभास हुआ । इतना ज़्यादा कि वह रात को 11 बजे ही पेडर रोड जाना चाहती थी लेकिन कार न होने की वजह से जा न सकी । उसकी माँ को रात के इस वक़्त गीता का वहां जाना पसंद नहीं आया था । इसके अलावा उसने कहा कि चूँकि गुरुदत्त अगली सुबह मद्रास जाने वाले थे इसलिए रात के वक़्त वहां जाने की कोई तुक नहीं बनती ।
गीता सो तो गयी लेकिन रात के 2 बजे बिना किसी ख़ास वजह के उसे बड़ी बेचैनी का अनुभव हुआ और सुबह उठ कर सबसे पहला काम उन्होंने यह किया कि गुरुदत्त के पड़ोसी के घर गुरुदत्त के लिए फ़ोन किया । गुरुदत्त का नौकर जब लाइन पर आया तो उससे गीता ने साहब को उठाने के लिया कहा । नौकर ने वापस आकर फ़ोन पर जब बताया कि साहब अभी तक सो रहे हैं और दरवाज़ा अन्दर से बंद है तो गीता ने उसे दरवाज़ा तोड़ने को कहा और खुद अपनी एक साल की बच्ची को लेकर टैक्सी से बांद्रा,पेडर रोड रवाना हो गयीं ।
जब वह आर्क रॉयल पहुँची तब नौकरों द्वारा दरवाज़ा तोड़ा जा चुका था । गीता ने गुरुदत्त को जगाने की कोशिश की लेकिन उनका जिस्म ठण्डा पड़ चुका था । एक साल की बेटी भी,"पापा-पापा उठो न?" कह रही थी । धीरे-धीरे जब गीता को समझ में आया कि क्या हो गया है तब मारे सदमे के वह बेहोश हो गयी । बेहोशी के आलम में ही उनकी चूड़ियाँ तोड़ दी गयी और श्रीमती मुखर्जी(जो उस समय तक पहुँच चुकी थी) ने उनकी एक सोने की चूड़ी अपने हाथ में पहन ली थी । "बेचारी गीता," नर्गिस ने बताया,"इतना रो रही थी कि मुझसे ज़्यादा देर तक उसे देखा नहीं जा रहा था ।"
इस बीच गुरुदत्त की मौत की खबर शहर में जंगल की आग की तरह फैल गयी थी और शाम के 5 बजे तक फ़िल्म उधोग की काफी सारी जानी-मानी हस्तियाँ और दुसरे लोग उनके घर के बाहर जमा हो गए थे । इस आकस्मिक मृत्यु की वजह से बहुत कम लोग तक ही खबर पहुँच सकी और कईयों ने तो इसपर विश्वास करने से इंकार कर दिया लेकिन जब खबर की पुष्टि हुई तो सारी फ़िल्म इंडस्ट्री सकते में आ गयी । मीना कुमारी फ़िल्म 'बहु-बेग़म' की शूटिंग कर रही थीं जहाँ उन्हें सादिक बाबु के ज़रिए खबर मिली । पृथ्वीराज कपूर मॉडर्न स्टूडियो में शूटिंग रोक कर दौड़े आये । धीरे-धीरे सभी स्टूडियो बंद हो गए ।
जैसे जैसे लोगों तक खबर पहुँच रही थी वैसे वैसे लोग पहुँचते जा रहे थे । इसके बावजूद गुरुदत्त का पूरा घर और यहाँ तक की सीढियाँ भी लोगों से भरी हुई थीं । करीब 7 बजे आँखों में आँसू लिए रहमान आये,उसके बाद रोती हुई मीना कुमारी आयीं । उसके बाद सोहराब मोदी और दुसरे लोग आये ।
जैसे अर्थी दरवाज़े तक पहुंची सिसकती-रोती गीता दत्त उसके पीछे भागी । मीना कुमारी ने उन्हें पकड़ लिया और सांत्वना देने लगीं । वहीदा रहमान और उनकी बहन सईदा भी सिसक रहीं थी । धीरे से अर्थी को बाहर ले जाया गया जहाँ लाकर एक लॉरी में उसे रख दिया गया । अर्थी पर ढेरों फूल मालाएं रख दी गयी और धीरे-धीरे लॉरी-जोकि गुरुदत्त की फ़िल्म कंपनी की ही थी-ढेरों साथियों से घिरे अपने मालिक को सोनापुर ले जाने के लिए चल दी । जो लॉरी में नहीं आ सके वे अर्थी के साथ-साथ चलने लगे । जॉनी वॉकर गुरुदत्त के भाई आत्माराम को उनकी पीठ थपथपा कर सांत्वना दे रहे थे । जो अर्थी से पहले सोनपुर के लिए रवाना हो चुके थे उनमे थे शम्मी कपूर,जॉनी वॉकर,के.आसिफ़,जैमिनी दीवान,कमाल अमरोही और अन्य । के.आसिफ़,जिनको एक दिन पहले ही हॉस्पिटल से छुट्टी मिली थी,को उनकी तबियत की वजह से सोनपुर जाने से मना किया जा रहा था लेकिन वे माने नहीं । "मैं सो नहीं पाउँगा अगर मैंने उसे देखा नहीं, "उन्होंने कहा,"मुझे आखिरी बार उसका चेहरा देखने के लिए जाना चाहिए । " दायें हाथ को सहारे से लटकाए वह बेंच पर बैठे थे ।
8:00 बजे तक अंतिम यात्रा में बहुत भीड़ हो चुकी थी और व्यवस्था सँभालने के लिए 8:30 बजे पुलिस बुलाई गयी | गुरुदत्त के अंतिम दर्शन करने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी जिसे ठेल कर बार-बार पुलिस द्वारा पीछे हटाया जा रहा था । देव आनंद,राज और शम्मी कपूर ने लोगों से पीछे रहने की अपील की लेकिन लोग जिनमे आम प्रशंसक,डायरेक्टर,एक्टर,दोस्त आदि सभी थे उनके अंतिम दर्शन करने से वंचित नहीं रहना चाहते थे ।
शम्मी कपूर बेंच पर बैठे के.आसिफ़ के पास गए और उन्हें सहारा देकर भीड़ से गुज़ारते हुए गुरुदत्त की पार्थिव देह तक लाये जहाँ अंतिम रस्में चल रही थीं । के.आसिफ़ झुके और धीरे से गुरुदत्त के गालों को अपने बाएँ हाथ से नरमी से सहलाते हुए बोले,"कितना मासूम लग रहा है....... जैसे कि सिर्फ़ सो रहा हो ।"
अंतिम रस्में शुरू हो गयी और चिता को आग देने के लिए राजकपूर गुरुदत्त के बड़े पुत्र को पुकारने लगे जो भीड़ में बहुत दूर था जिसकी वजह से उनके आत्माराम को मुखाग्नि देनी पड़ी ।
किसी ने कहा 'लव एंड गॉड' का क्या होगा,के.आसिफ़ का तो बहुत बड़ा नुकसान हो गया क्योंकि गुरुदत्त उसमे मजनू की भूमिका निभा रहे थे । "मैंने एक बहुत अच्छा दोस्त खो दिया । और यही मेरा सबसे बड़ा नुकसान है", के.आसिफ़ का जवाब था ।
राम-नाम का उच्चारण तेज़ होने लगा,लपटें भी आसमान छूने लगी और इस तेज़ होते जाते उच्चारण और लपटों के बीच मौत की नींद में सोया हुआ ईश्वर का वह ग़ुलाम उठते हुए धुंए के साथ चल पड़ा अपने बनाने वाले से जा मिलने ।
हालाँकि मूल लेख अंग्रेज़ी भाषा में है लेकिन चूँकि यह अंक अन्य अंकों के साथ बाईंडिंग में है जिसकी वजह से इसे ठीक से स्कैन नहीं किया जा सकता इसलिए मैं इस लेख के मुख्य अंशों का हिंदी में अनुवाद कर आप लोगों के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ । इस लेख का शीर्षक है
"खुदा,मौत और ग़ुलाम"
पेडर रोड पर आर्क रॉयल फ्लैट का बड़ा हाल जो अमूमन रहने के कमरे के तौर पर इस्तेमाल होता था और कभी-कभी बावक़्ते-ज़रूरत खाने के कमरे के तौर पर भी इस्तेमाल कर लिया जाता था । लेकिन आज इस कमरे का सारा फर्नीचर हटा दिया गया था और यह लोगों से खचाखच भरा था । बहुत नफ़ीस तरीके से पहने हुए स्टील-ब्लू सूट,नीली टाई और नीले मोज़ों में वह फ़र्श पर लेटा था जैसे सोया हुआ हो । ऐसा लगता था कि जैसे किसी लम्बे थका देने वाले सफ़र से वापस लौटकर उसमे बैडरूम तक जाने तक की भी ताक़त न बची हो और वह यही हाल में जहाँ जगह मिली वही एक मीठी और गहरी नींद में सो गया हो । इतनी गहरी और मीठी नींद जिसमे हाल में मौजूद तमाम की मौजूदगी भी उसे उठा नहीं पा रही हों ।
अगरबत्ती का खुशबूदार धुंआ हवा में फैला था और दीवार पर लगे शीशे में सब कुछ धुंधला सा रहा था जिससे चलते-फिरते लोग की आकृतियाँ भूतों सरीखी लग रही थीं । तभी आँसुओं से भीगा चेहरा लिए राजकपूर ने आखिरी फूलों की माला मृत देह पर रखी । अर्थी तैयार थी । कमरे में रूदन-क्रंदन की आवाज़ें तेज़ होने लगी । तभी किसी ने कहा कि अर्थी ले जाने का समय हो गया है । अर्थी उठाने के लिए कई हाथ बढ़े लेकिन राजकपूर ने हाथ से रुकने का इशारा किया और हाथ जोड़ कर रोने वाली औरतें-जिनमे गुरुदत्त की पत्नी और माता भी थी-की तरफ़ मुड कर पुछा,"क्या आपकी आज्ञा है?" लेकिन जवाब में सिर्फ़ कुछ सिसकियाँ ही उभरी ।
शाहिद लतीफ़,जॉनी वॉकर के भाई और दो लोगों ने अर्थी उठा ली । वातावरण में 'राम-नाम सत्य है,गोपाल नाम सत्य है' जैसे उच्चारण गूंजने लगे और शनिवार,10 अक्टूबर 1964 के दिन गुरुदत्त अपनी अंतिम यात्रा पर चल दिए ।
आखिरी दफ़ा गुरुदत्त को मृत्यु से दो दिन पहले फ़िल्म 'बहारें फिर भी आयेंगी' के सेट पर देखा गया था जिसमे वह एक रिपोर्टर की भूमिका कर रहे थे । जो दृश्य हमने देखा उसमे वह अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा दे देतें हैं और इस्तीफ़ा मेज़ पर फेंकते हुए माला सिन्हा से कहते हैं,"चाहे तुम इसे मंज़ूर करो या न करो लेकिन यह मेरा इस्तीफ़ा है । मैं जा रहा हूँ ...." । माला उन्हें वापस लौटने के लिए पुकारती है लेकिन वो लौटते नहीं । अब वह वापस नहीं आयेंगे,कभी नहीं !
हम उनके ऊपर के कमरे के ऑफिस में भी गए । उन्होंने बताया कि वे हमारे संपादकीय दफ़्तर को देखना चाहते हैं । वे वहां कुछ दृश्य फ़िल्माना चाहते थे । हमने कहा कि वे कभी भी आ सकते हैं । उन्होंने कहा कि शायद अगले हफ़्ते । लेकिन उन्होंने अपना वादा नहीं निभाया और यह एकलौता वादा नहीं था जो उन्होंने नहीं निभाया । जुम्मे की रात को 12:30 बजे उन्होंने अपने पड़ोसी के फ़ोन से राजकपूर को फ़ोन किया था जिसमे उन्होंने नव-निर्मित एक्टर्स गिल्ड पर अपने तबादला-ए-ख्याल किये थे जिसके गुरुदत्त एक मुख्य सदस्य थे । उन्होंने राजकपूर को शनिवार की शाम को आने के लिए आमंत्रित भी किया था और उन्हें 'कागज़ के फूल' दिखाने की व्यवस्था भी की थी ।
राजकपूर से बात होने के बाद वे ड्राइंग-रूम में गए जहाँ अबरार अल्वी 'बहारें फिर भी आएँगी' का क्लाइमेक्स दृश्य लिख रहे थे । विडंबना देखिये,यह माला सिन्हा द्वारा अभिनीत उस चरित्र का मृत्यु दृश्य था जो अकेलेपन,मानसिक तनाव एवं हृदयघात का शिकार होता है । दृश्य के बारे में उनकी प्रतिक्रिया सामान्य रूप से थी । दृश्य के बारे में चर्चा करते समय गुरुदत्त अबरार अल्वी को किसी ख़त के बारे में बताते हैं जो उन्हें पूना के उनके किसी पुराने परिचित ने आर्थिक सहायता मांगने के उद्देश्य से भेजा था । साथ ही साथ दृश्य में वर्णित 'अकेलेपन' पर भी कुछ चर्चा हुई जो अबरार लिख रहे थे ।
"मैं अब आराम करना चाहूँगा", गुरुदत्त को अबरार को कहे गए यह अंतिम शब्द थे जिसके बाद अपने पीछे दृश्य लिखते अबरार को छोड़कर सोने के कमरे में वह एक ऐसी नींद में सोने चले गए जिससे कि वह कभी भी जागने वाले नहीं थे । कहा जाता है कि उनका अंत सुबह के किसी वक़्त आया था ।
गुरुदत्त के निजी चिकित्सक हस्बे-मामूल सुबह के समय आये और उन्हें जागा न पाकर लौट गए । वे दोबारा 11 बजे फिर लौटकर आये लेकिन सिर्फ़ उन्हें मृत पाने के लिए । बैडरूम का मुख्य दरवाज़ा बंद था जिसे गीता दत्त के कहने पर तोड़कर घर के नौकरों द्वारा अन्दर जाया गया । डॉक्टर्स द्वारा मृत्यु का सर्टिफिकेट न देने पर पुलिस को सूचित किया गया ।
सबसे पहले आने वालों में से थे राजकपूर और देव आनंद जिन्हें फ़ोन पर गुरुदत्त की मौत की खबर दी गयी । देव ने अपनी शूटिंग कैंसिल कर दी और भागे-भागे पेडर रोड आये । राजकपूर भी आये और मृत देह के साथ पोस्टमॉर्टेम हाउस गए जहाँ से औपचारिकतायें पूरी होने के बाद मृत देह को वापस पेडर रोड ले जाया गया ।
सुनील दत्त और नर्गिस भी अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में से थे । मृत्यु के दो दिन बाद नर्गिस ने बताया कि,"गीता दत्त ने मुझे बताया था कि फ्राइडे की रात उसे एक अजीब सी बेचैनी ने घेर रखा था "। नर्गिस के अनुसार गीता दत्त,जो अपनी माँ के घर पर थी,को एक अजीब सा पूर्वाभास हुआ । इतना ज़्यादा कि वह रात को 11 बजे ही पेडर रोड जाना चाहती थी लेकिन कार न होने की वजह से जा न सकी । उसकी माँ को रात के इस वक़्त गीता का वहां जाना पसंद नहीं आया था । इसके अलावा उसने कहा कि चूँकि गुरुदत्त अगली सुबह मद्रास जाने वाले थे इसलिए रात के वक़्त वहां जाने की कोई तुक नहीं बनती ।
गीता सो तो गयी लेकिन रात के 2 बजे बिना किसी ख़ास वजह के उसे बड़ी बेचैनी का अनुभव हुआ और सुबह उठ कर सबसे पहला काम उन्होंने यह किया कि गुरुदत्त के पड़ोसी के घर गुरुदत्त के लिए फ़ोन किया । गुरुदत्त का नौकर जब लाइन पर आया तो उससे गीता ने साहब को उठाने के लिया कहा । नौकर ने वापस आकर फ़ोन पर जब बताया कि साहब अभी तक सो रहे हैं और दरवाज़ा अन्दर से बंद है तो गीता ने उसे दरवाज़ा तोड़ने को कहा और खुद अपनी एक साल की बच्ची को लेकर टैक्सी से बांद्रा,पेडर रोड रवाना हो गयीं ।
जब वह आर्क रॉयल पहुँची तब नौकरों द्वारा दरवाज़ा तोड़ा जा चुका था । गीता ने गुरुदत्त को जगाने की कोशिश की लेकिन उनका जिस्म ठण्डा पड़ चुका था । एक साल की बेटी भी,"पापा-पापा उठो न?" कह रही थी । धीरे-धीरे जब गीता को समझ में आया कि क्या हो गया है तब मारे सदमे के वह बेहोश हो गयी । बेहोशी के आलम में ही उनकी चूड़ियाँ तोड़ दी गयी और श्रीमती मुखर्जी(जो उस समय तक पहुँच चुकी थी) ने उनकी एक सोने की चूड़ी अपने हाथ में पहन ली थी । "बेचारी गीता," नर्गिस ने बताया,"इतना रो रही थी कि मुझसे ज़्यादा देर तक उसे देखा नहीं जा रहा था ।"
इस बीच गुरुदत्त की मौत की खबर शहर में जंगल की आग की तरह फैल गयी थी और शाम के 5 बजे तक फ़िल्म उधोग की काफी सारी जानी-मानी हस्तियाँ और दुसरे लोग उनके घर के बाहर जमा हो गए थे । इस आकस्मिक मृत्यु की वजह से बहुत कम लोग तक ही खबर पहुँच सकी और कईयों ने तो इसपर विश्वास करने से इंकार कर दिया लेकिन जब खबर की पुष्टि हुई तो सारी फ़िल्म इंडस्ट्री सकते में आ गयी । मीना कुमारी फ़िल्म 'बहु-बेग़म' की शूटिंग कर रही थीं जहाँ उन्हें सादिक बाबु के ज़रिए खबर मिली । पृथ्वीराज कपूर मॉडर्न स्टूडियो में शूटिंग रोक कर दौड़े आये । धीरे-धीरे सभी स्टूडियो बंद हो गए ।
जैसे जैसे लोगों तक खबर पहुँच रही थी वैसे वैसे लोग पहुँचते जा रहे थे । इसके बावजूद गुरुदत्त का पूरा घर और यहाँ तक की सीढियाँ भी लोगों से भरी हुई थीं । करीब 7 बजे आँखों में आँसू लिए रहमान आये,उसके बाद रोती हुई मीना कुमारी आयीं । उसके बाद सोहराब मोदी और दुसरे लोग आये ।
जैसे अर्थी दरवाज़े तक पहुंची सिसकती-रोती गीता दत्त उसके पीछे भागी । मीना कुमारी ने उन्हें पकड़ लिया और सांत्वना देने लगीं । वहीदा रहमान और उनकी बहन सईदा भी सिसक रहीं थी । धीरे से अर्थी को बाहर ले जाया गया जहाँ लाकर एक लॉरी में उसे रख दिया गया । अर्थी पर ढेरों फूल मालाएं रख दी गयी और धीरे-धीरे लॉरी-जोकि गुरुदत्त की फ़िल्म कंपनी की ही थी-ढेरों साथियों से घिरे अपने मालिक को सोनापुर ले जाने के लिए चल दी । जो लॉरी में नहीं आ सके वे अर्थी के साथ-साथ चलने लगे । जॉनी वॉकर गुरुदत्त के भाई आत्माराम को उनकी पीठ थपथपा कर सांत्वना दे रहे थे । जो अर्थी से पहले सोनपुर के लिए रवाना हो चुके थे उनमे थे शम्मी कपूर,जॉनी वॉकर,के.आसिफ़,जैमिनी दीवान,कमाल अमरोही और अन्य । के.आसिफ़,जिनको एक दिन पहले ही हॉस्पिटल से छुट्टी मिली थी,को उनकी तबियत की वजह से सोनपुर जाने से मना किया जा रहा था लेकिन वे माने नहीं । "मैं सो नहीं पाउँगा अगर मैंने उसे देखा नहीं, "उन्होंने कहा,"मुझे आखिरी बार उसका चेहरा देखने के लिए जाना चाहिए । " दायें हाथ को सहारे से लटकाए वह बेंच पर बैठे थे ।
8:00 बजे तक अंतिम यात्रा में बहुत भीड़ हो चुकी थी और व्यवस्था सँभालने के लिए 8:30 बजे पुलिस बुलाई गयी | गुरुदत्त के अंतिम दर्शन करने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी जिसे ठेल कर बार-बार पुलिस द्वारा पीछे हटाया जा रहा था । देव आनंद,राज और शम्मी कपूर ने लोगों से पीछे रहने की अपील की लेकिन लोग जिनमे आम प्रशंसक,डायरेक्टर,एक्टर,दोस्त आदि सभी थे उनके अंतिम दर्शन करने से वंचित नहीं रहना चाहते थे ।
शम्मी कपूर बेंच पर बैठे के.आसिफ़ के पास गए और उन्हें सहारा देकर भीड़ से गुज़ारते हुए गुरुदत्त की पार्थिव देह तक लाये जहाँ अंतिम रस्में चल रही थीं । के.आसिफ़ झुके और धीरे से गुरुदत्त के गालों को अपने बाएँ हाथ से नरमी से सहलाते हुए बोले,"कितना मासूम लग रहा है....... जैसे कि सिर्फ़ सो रहा हो ।"
अंतिम रस्में शुरू हो गयी और चिता को आग देने के लिए राजकपूर गुरुदत्त के बड़े पुत्र को पुकारने लगे जो भीड़ में बहुत दूर था जिसकी वजह से उनके आत्माराम को मुखाग्नि देनी पड़ी ।
किसी ने कहा 'लव एंड गॉड' का क्या होगा,के.आसिफ़ का तो बहुत बड़ा नुकसान हो गया क्योंकि गुरुदत्त उसमे मजनू की भूमिका निभा रहे थे । "मैंने एक बहुत अच्छा दोस्त खो दिया । और यही मेरा सबसे बड़ा नुकसान है", के.आसिफ़ का जवाब था ।
राम-नाम का उच्चारण तेज़ होने लगा,लपटें भी आसमान छूने लगी और इस तेज़ होते जाते उच्चारण और लपटों के बीच मौत की नींद में सोया हुआ ईश्वर का वह ग़ुलाम उठते हुए धुंए के साथ चल पड़ा अपने बनाने वाले से जा मिलने ।
3 comments:
zaheer bhai,
asha karta houn ki aapne Satya Saran ke dwara Abrar Alvi se kiye gaye sakshatkaaron ke adhaar par likhi gayi Gurudutt Ki biography(Gurudutt Ke Saath Ek Dashak) ko para hoga.
-Uprokth kitaab Gurudutt ke baare mein amulya jaankaari pradaan karti hain.
Parag bhai unfortunately i didn't yet had read that book.
please read that book. its beautiful
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