राही मासूम रज़ा साहब एक संवेदनशील लेखक थे जिनके लेखन में समाज के मौजूदा हालातों पर पारखी नज़र से गौर-ओ-तफ़क्कुर किया जाता था चाहे वह समाजी क्षेत्र में हो या फ़िल्मी क्षेत्र में जिससे बाद के सालों में राही साहब जुड़े थे । संप्रदायिकता और उसके फ़िल्मी दुनिया में पड़ने वाले असरात का जायज़ा राही साहब अपने इस लेख में ले रहे हैं जो अस्सी के दशक के आरम्भ में फ़िल्मी पत्रिका 'सुषमा' में छपा था ।
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